तालिबान के आने से क्यों डर रहे हैं तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान

 


अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी इलाकों में जैसे-जैसे तालिबान का दखल बढ़ रहा है, मध्य एशियाई देशों की सरकारें अपनी दक्षिणी सीमाओं पर चौकसी बढ़ाने को लेकर तेज़ी से कदम उठाने लगी हैं.

ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं जब सैकड़ों की संख्या में अफ़ग़ानिस्तान हुकूमत के सैनिकों ने तालिबान के हमलों से जान बचाने के लिए ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान की तरफ़ जाकर पनाह ली है.

पर्यवेक्षक इस बात की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की बागडोर एक बार फिर से संभालने वाला है. चिंताएं इस बात को लेकर भी हैं कि अन्य चरमपंथी गुट मध्य एशिया में नया ठिकाना बना सकते हैं.

कई विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले साल अमेरिका-तालिबान के बीच हुए समझौते के बावजूद अफ़ग़ानिस्तान के भीतर शांति प्रक्रिया के वापस पटरी पर लौटने की संभावना कमज़ोर दिखाई देती है. उनका कहना है कि अमेरिका-तालिबान समझौता केवल अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सैनिकों के आसानी से निकल जाने का रास्ता मुहैया कराता है.

मध्य एशिया के तीन मुल्कों की सरहदें अफ़ग़ानिस्तान से लगती हैं. ऐसा लगता है कि इनमें तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान ने तालिबान से सीधा संपर्क स्थापित करने के लिए कूटनीतिक कोशिशें शुरू की हैं.

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